गुस्से से उठ जले हो तुम दामन को झाड कर
जाते रहेंगे हम भी गरेबान फाड़ कर
दिल वो नगर नही की फिर आबाद हो सके
पछताओगे सुनो ये बस्ती उजाड़ कर
जालिम ये क्या निकली रफ़्तार रफ्ता रफ्ता
इस चल पे चलेगी तलवार रफ्ता रफ्ता
हर आन हमको तुझ बिन एक एक बरस हुयी है
क्या आ गया जमाना राफ्ताअ रफ्ता
जालिम ये क्या निकली रफ्ताआर रफ्ता रफ्ता
यही सुलूक उसके अक्सर चले गए तो
बैठेंगे अपने घर हम नाचार रफ्ता रफ्ता
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