Thursday, November 26, 2009

रफ्ता rafta

गुस्से से उठ जले हो तुम दामन को झाड कर

जाते रहेंगे हम भी गरेबान फाड़ कर

दिल वो नगर नही की फिर आबाद हो सके

पछताओगे सुनो ये बस्ती उजाड़ कर

जालिम ये क्या निकली रफ़्तार रफ्ता रफ्ता

इस चल पे चलेगी तलवार रफ्ता रफ्ता

हर आन हमको तुझ बिन एक एक बरस हुयी है

क्या आ गया जमाना राफ्ताअ रफ्ता

जालिम ये क्या निकली रफ्ताआर रफ्ता रफ्ता

यही सुलूक उसके अक्सर चले गए तो

बैठेंगे अपने घर हम नाचार रफ्ता रफ्ता

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